श्री ऋषि पराशर आश्रम

राजस्थान के अलवर जिले मे थानागाजी तहसील के सिमावती ईलाको के अन्तर्गत गांव खोह (दरिबा) से 3 कि.मी. पष्चिम में पहाड़ी मे मध्य श्री पारासर जी की भजन स्थली विद्यमान है। पहाड़ी के ऊपर एक विकट गुफा के अन्दर बैठकर श्री पारासर जी ने अपनी साधना पूरी की थी। कहते है कि पारासरजी ने यहां पर साठ हजार वर्ष तक तपस्या की थी, जहां पर पारासरजी की भजन स्थली है वहां पर विचित्र प्रकार के पत्थरों से बनी छोटी-छोटी गुफायें व विचित्र प्रकार के छेद व आकृतियां बनी हुई है । यहां पर किसी एक भक्त ने एक तिबारा बनाया था।

एक बार वषिष्ठजी ने पुत्ररत्न प्राप्ति हेतु नन्दन वन में 12 साल तक तपस्या की । उस तपस्या से प्रसन्न होकर श्री शंकरजी ने कहा कि मैं तुम्हारे घर पोत्र रुप मे आऊँगा। श्री शंकरजी के एक हजार अवतारों में से 952 वां अवतार वषिष्टजी के पोत्र व शक्ति के रुप में श्री पारासर जी पृथ्वी पर अवतरित हुये।

इस क्षेत्र के लोग बहुत ही भाग्यषाली हैं जिनके भाग्योदय हेतु श्री पाराषरजी के इस स्थान को तपोस्थली के रुप में स्वीकार किया। इस पावन स्थान पर आकर बहुत से लोग अपनी मन इच्छा मुराद पूरी करते हैं। अनेक लोगों ने इस स्थान की सेवा व मान्यता करके अपने भाग्य को संवारा है।

चारों तरफ फैली सुन्दर पहाडि़यों मे मध्य स्थित यह रमणिक स्थान बरबस ही हृदय को आनन्दित कर देता है। पहाड़ी से बहती हुई गंगा जब चट्टानों से अठखेलियां करती हुई जन मानस को पवित्र करने, कुंड में प्रकट होती है जा भाग्यवान पुरुष उसमें स्नान कर आचमन लेकर अपने पाप क्षीण कर देते है। निकट ही शंकरजी का मन्दिर व हनुमानजी का मन्दिर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने हेतु विराजमान है। अनेक साधू संतों ने इस पावन स्थान पर आकर भजन करके सिद्धि प्राप्त कर अपना जीवन धन्य किया।

लगभग 40 साल पहले यहां एक संत प्रेमदासजी पधारे उन्होंने अथक प्रयास कर इस भूमि पर एक सुन्दर आश्रम का निर्माण करवाया। 1887 में श्री प्रेमदासजी ने अपना पंचतत्व शरीर त्याग भगवत धाम को प्रयाण किया। उनके स्थान पर स्थानाधीष उनके प्रिय षिष्य जगमोहन दासजी को अनेक साधू सन्तों की उपस्थिति में गद्दी पर बैठाकर सुन्दर भंडारे का आयोजन करवाया गया। साधू सन्तों को अच्छी विदाई की गई। वैष्य परिवार में जन्में श्री जगमोहन दासजी की जन्म भूमि खोह दरीबा ही है। शीतल स्वभाव के संत बरबस ही आगन्तुक को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। सुन्दर गऊषाला का संचालन महात्माजी के द्वारा होता है। साधू सेवा में जगमोहन दासजी की बराबरी करना बड़ी टेढ़ी खीर है।

श्री महावीरदासजी

इसी स्थान पर पहाड़ी के ऊपर एक भव्यभजन कुटी है। जो कि साधुओं की भजन स्थली रहा है। इसी भजन कुटी में लगभग 35 साल पहले 1980 में परम वैरागी सन्त प्रातः स्मरणीय श्री श्री 108 श्री महाबीर दासजी पधारे गीता के एक प्रमुख श्लोक सततं किर्तयन्तोमाम् के प्रमुख उपासक श्री महाबीरदासजी निरन्तर जपयज्ञ में संलग्न रहा करते थे। ऐसा कोई समयनही गुजारते थे जम वो जप न करते हों।

साधू सेवा ब्राहा्रण सेवा के प्रमुख अनुयायी महात्माजी को जीव सेवा में बडा ही आनन्द आता था। प्रमुख प्रत्यक्षदर्षियों ने बताया की ऐसी तपस्वी मूर्ति इस युग में दुर्लभ है। श्री महाबीरदासजी की सेवा का सुअवसर अनेक लोगो को मिला लेकिन अचानक एकदिन वह त्यागी संत सबको छोड़कर उत्तराखंड को प्रस्थान कर गये।

श्री कर्दम मुनि आश्रम

श्रीमद् भागवत में श्री कर्दममुनि जी के जीवन चरित्र का पूर्ण विवरण मिलता है। जिनकी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण चन्द्रजी उनके घर में कपिलदेव के रुप में आये। कपिल के जन्म ग्रहण करते ही कर्दम मुनि जंगल की ओर चल पड़े। हमारे क्षेत्र के जनमानस की धारणा है कि श्री कर्दमजी वहां से चलकर ग्राम कालवाड़ के पष्चिम में अत्यन्त ही रममिणक भूमि में आकर भजन करने लगे। रास्थान के अलवर जिले में राजगढ़ तहसील के पालपुर गांव से चार कि.मी. पष्चिम में स्थित कालवाड़ ग्राम में मीणा तथा ब्राहा्रण जाति के लोग रहते है। आसपास के क्षेत्र के लोगों की इस कर्दम मुनि के आश्रम के प्रति आन्तरिक श्रृद्धा भाव है। चारों तरफ हरियाली के बीच प्रत्येक क्षण बहती गंगा धार्मिक व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है।

बीच बीच में साधू संत यहां पर आकर भजन साधना करते रहते हैं।