उदयनाथ जी – उद्दालक ऋषि आश्रम

राजस्थान के अलवर जिले के अन्तर्गत थानागाजी तहसील में मैजोड़ नामक ग्राम है। इस मीना जाती बाहुल्य ग्राम से मात्र तीन किलोमीटर पूर्व व उत्तर के कोण में बहुत ही सुन्दर व रमणिक पावन स्थान है। ऊंची पहाडी की तलहटी में स्थित यह उद्दालक ऋषि आश्रम चारों तरफ ऊंचे-ऊचे पेड़ों से घिरा हुआ है। इस स्थान पर शुरु में मात्र एकषिवालय बना हुआ था तथा एक छोटी गुफा नजर आती थी जहां पर उद्दालक ऋषि की एक मूर्ति विराजमान थी। बहुत ही सुन्दर दो जलकुंड स्वच्छ पानी से भरे रहते थे। आज से 30 साल पहले नाथ संप्रदाय के एक महात्मा (श्री किषननाथ) जी यहां पधारे। जिन्होने इस स्थान को अपनी साधना हेतु चुना। थोड़ी ही दिनों में श्री किषननाथजी ने आस-पास के क्षेत्र मे अपनी भक्तिका प्रभाव दिखाया। लोगों के सहयोग से महात्माजी ने वृक्ष लगवाये तथा अनेक निर्माण कार्य करवाया। आश्रम के चारों तरफ दीवार करवायी तथा अनेक लोगों को भक्ति के मार्ग पर चलाया। सन 1995 को महात्माजी इस लोक को छोड़ पंचतत्त्व में विलीन हो गये जिनकी चादर श्री फूलनाथ पर पड़ी यानी श्री उद्दालक ऋषि की गद्दी पर श्री फूलनाथजी विराजमान हुये।
उत्तरप्रदेष के प्रतापगढ़ जिले में जन्में श्री फूलनाथ जी महाराज बचपन से भगवान् शंकर के उपासक रहे है। अष्टम क्लास तक षिक्षा ग्रहण करने के बाद आप आ गये अपने गुरु श्री 1008 श्री योगी इतवार नाथजी महाराज के श्री चरणों में। श्री गुरु महाराजजी का आश्रम राणा जी की समाधी नंगली डेरी, नई दिल्ली के सामने नजबगढ़ के पास आकर श्री फूलनाथ जी नये अपनी सेवा से सभी को आनन्दित कर दिया। दिन-रात की अथिक सेवा के कारण श्री गुरुमहाराज जी के विषेष कृपा पात्र श्री फूलनाथ जी गुरु आश्रम पांच वर्ष रहने के बाद आप श्री भ्रमण करते-करते राजस्थान की भरतहरी की छीड़ में ताराऊंडा नामक स्थान पर सन 1997 में पधारे। अपने जीवन की कठिन साधना का दौर शुरु करते हुये आपने आठ महीने तपस्या रत रहे। इस काल में आसपास के क्षेत्र मं आपकी कीर्ति फैल चुकी थी। सादगी भरा जीवन जीने के आदि श्री फूलनाथ जी नषे से दूर रहते है।

साधु सेवा करने में आपको विषेष गुरु कृपा प्राप्त है। आसपास के क्षेत्र मं साधुगण आपके व्यवहार से बडें ही आनन्दित रहते है। हंसमुख स्वभाव के श्री फूलनाथ जी बरबस ही आगन्तुक को अपनी और आकर्षित कर लेते है। आप ताराऊँडा में तपस्यारत थे कि अचानक उद्दालक ऋषि आश्रम पर श्री किषननाथजी के भंडारे का आयोजन का समय आ गया। आसपास के बुद्धिजीवियों ने श्री उद्धालक ऋषि आश्रम पर श्री तेजनाथ की जगह अच्छे चरित्रवान साधू को बैठाने हेतु उपाय किये। इसी के चलते इस क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों ने इस स्थान हेतु श्री फूलनाथजी को सहर्ष स्वीकार किया और दिनांक 27 मई 1998 को सभी सन्त समाज के सामने तथा उपस्थित हजारों भक्तों के सामने श्री फूलनाथजी को उद्दालक ऋषि आश्रम पर श्री किषननाथ जी की चद्दर रस्म निभाते हुए इस स्थान का स्थानाधीष नियुक्त किया।

उपस्थित जनसैलाब की आँखों में खुषी झलक उठे। हर्षोध्वनि व कर्तल ध्वनि के बीच श्री किषननाथ जी की गद्दी पर श्री फूलनाथ जी को बैठाया गया, विषाल भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें आसपास की जनता ने तन,मन,धन से सहयोग कर यष, लाभ अर्जित किया।
श्री फूलनाथजी के इस आश्रम पर आते ही आज इस इस आश्रम की प्रगति दिन दूनी रात चैगनी बढ़ती ही जा रही है। अनेक जीवन निर्माण किये जा रहें है, आने जाने वालों के लिए उत्तम भंडारों की व्यवस्था रहती है। इनके मधुर व्यवहार से प्रभावित होकर विभिन्न सम्प्रदायों के साधू यहां पर आरक अनेक दिन रहकर भजन साधन करके जाते है।