रानी रत्नावती का भानगढ़ – रहस्य व रोमांचक नगर

अलवर क्षेत्र के गांव गोलाकाबास से तील किलोमीटर दूर भानगढ़ का किला आज भी रानी रत्नावती के पतीव्रत धर्म की याद दिलाता रहता है। साधु सेवा में तत्पर रानी से सभी लोग चिढते थे। साधुओं की सेवा करने हेतु रानी अपनी लोक लाज भी त्याग दिया करती थी। कुछ लोगों ने रानी के चरित्र के प्रति राजा को शंकित कर दिया। राजा ने रानी को समाप्त करने हेतु महल में खुला शेर छुडवा दिया। शेर से रानी का सामना हुआ तो रानी ने ररसिंह भगवान के रुप में शेर का स्वागत किया। शेर रानी के चरण चाटने लगा तो सभी लोग रानी के प्रति श्रद्धामय हो उठे। भक्त रानी की जय हो जय हो के नारे आकाष में गूज उठे।

एक बार एक तान्त्रिक संझा ने अपनी तन्त्र विद्या से रानी के तेल को अभिमन्त्रित कर दिया। भक्ति के बल पर रानी ने सब कुछ जान लिया। रानी ने पहले तेल एक सिला पर डाल दिया। वह सिला उठकर गई और उस तांत्रिक पर जाकर गिरी जिससे उसका अन्त हो गया।
एक बार राजा व रानी चोपड खेल रहे थे और उसी समय एक साहूकार ने समुद्र में रानी को अपना जहाज बचाने हेतु याद किया रानी ने वही बैठे बैठे जहाज की रक्षा की । लेकीन थोड़ा पानी हाथ में लगकर आ गया उसको देख राजा डर गया। रानी ने कहा डरो नही मैंने साहूकार का जहाज बचाया है। तो राजा ने कहा तुम इतना दूर हाथ भेज सकती हो तो तुम्हारे पीहर तितरवाड़े का दीपक यहां से ही बुझा दो। रानी ने हाथ बढाया और दीपक बुझा दिया तो इधन भानगढ़ काभी बुझ गया । दोनों शहर खण्डर बन गये सब लोग भाग गये।
आज भानगढ उजड शहर है लेकीन देखते ही बनता है षिव मन्दिर सरोवर पुराने मन्दिरों की इमारत आज भी पुरानी कथाओ को याद दिलाने हेतु।

रहस्य व रोमांचक नगर भानगढ़

थानागाजी से लगभग 43 किलोमिटर दक्षिण में भानगढ़ स्थान एक रहस्य व रोमांचक क्षेत्र के रुप में विख्यात है। भानगढ़ नगर के निर्जन तथा बीहडऋ वन में स्थित होने से यहां रात्रि के समय वातावरण डरावना एवं भयानक हो जाता है। रात्रि को जब धीरे धीरे हवा चलती है तो पेडों के पत्तों से विचित्र आवाजें निकलती है, साथ-साथ जंगली जानवरों की डरावनी आवाजों से वातावरण खोफनाक एवं डरावना हो जाता है। ऐसे निर्जन स्थान पर कोई प्राणी रात्रि के समय निवास नही करता है। मुगल बादषाह अकबर के शासन काल में आमेर के राजा भगवत दास ने विक्रम संवत 1631 (1574 ई.) में इस स्थान की प्राकृतिक छटा पर मुग्ध होकर भानगढ़ नगर को बसाया था। इस नगर की बसावट तीन किलोमीटर लम्बाई तथा दो किलामीटर चोडाई में थी, जिसके चारों और पत्थरों का विषाल परकोटा में स्थित था। नगर के मध्य हवेलियां, कुएं, मकान, राजमार्ग दोनों तरफ बनी दुकानें, नटनी की हवेली, मंगलमाता का मंदिर, भैरुजी का मंदिर, हनुमानजी का मंदिर गोपीनाथ जी मंदिर, राजमहल, महलों के भीतर पानी के विषाल टांके अन्न भण्डार, तथा देवी के मंदिर, महलों के भीतर से एक सुरंग जो पहाड़ी के नीचे की तरफ गई है। पहाडी पर तांत्रिक सेवेडा की छतरी व नक्कार खाना विषेष रुप से उल्लेखनीय है। मंदिर के बगल में उक कुण्ड है जिसमें गोमुख के बारह महिनों पानी झरता है। भानगढ़ लगभग 90 वर्ष तक शक्तिषाली एवं समृद्धिषाली नगर रहा था। लेकिन इस
नगर के अक्समात पतन होने का कारण नही बताया गया है। खण्डरों और धवस्त स्मारकों को देखकर यह सवाल उठता है कि इतना सुन्दर कलात्मक और देवताओं का नगर अचानक अजाड कैसे हो गया। इस विषय में कुछ किवदन्तियां प्रचलित है। नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध महात्मा बालकनाथ ने यहां के राजा को उसकी धूणी पर राजमहलों की छाया पडने से कुपित होकर सर्वनाष का श्राप दे दिया था जिससे भानगढ़ उजड गया। श्राप से तहस नहस इस नगर में भूत-प्रेत तथा अन्य दुष्ट आत्माएं विचरण करती है। इसी तरह की एक रोचक कथा के अनुसार तांत्रिक सेवडा भानगढ़ में निवास करता था उस समय सामने वाली पहाड़ी पर अपना आसन जमा रखा था (आज भी इस स्थान पर उसकी छतरी बनी हुई है) इस तांत्रिक ने भानगढ़ के राजा भगवंतदास की पत्नि रानी रत्नावली को देख और उस पर आसक्त हो गया तथा रानी रत्नावली को पाने के लिए अनेक प्रकार की कुटिल चाले चलने लगा। एक बार एकदासी रत्नावली के लिए एक बर्तन में तेल
लेकर जा रही थी, सेवडा ने अपनी तांत्रिक शक्ति से तेल पर वषीकरण मंत्र फूंक दिया। दासी ने इस तेल के बर्तन को लेजाकर रानी रत्नावली को दिया तो रानी ने अपनी दिव्य शत्ति से तेल में की गई कुटिल चाल को भांप लिया तथा उस तेल पर रानी ने अपनी तंत्र विद्या का प्रयोग कर दासी को एक विषाल चटटान पर डालने के आदेष दिया। दासी द्वारा चटटान पर तेल डालते ही एक भंयकर आवाज होने के साथ ही चटटान पहाड़ी पर साधना कर रहे तांत्रिक सेवडा की ओर अभिप्रेरित हो गई । जिससे उस दृष्ट की षिलाघात से मृत्यु हो गई।
मरते-मरते उस जादूगर ने श्राप दिया की भानगढ़ नगर शीघ्र ही नष्ट होकर मिटटी में मिल जाएगा।

भानगढ़ क्षेत्र में वनों की अंधाधूंध कटाई से इस स्थान की रमणीकता व प्राकृतिक सौंदर्य में काफी कमी आई है।