थानागाजी की ऐतिहासिक महत्व और सरिस्का अभयारण्य

थनागाजी तहसील एक अलवर की तहसील है बहुत पूराना मूगल कालीन ग्राम है जो अलवर जयपुर मार्ग पर स्थित जयपुर से 100 कि.मी. उत्तर में तथा अलवर 42 कि.मी. अलवर से दक्षिण दिषा की ओर स्थित है। थानागाजी, राजस्थान के पूर्वी भाग अलवर जिले के दक्षिण पष्चिम कोने में स्थित है यह कस्बा जयपुर से देहली वाया अलवर तक के किनारे बसा हुआ है। जयपुर राजस्थान की राजधानी, यहाँ से 100 कि.मी. दूर देहली 192 कि.मी दूर तथा अलवर 42 कि.मी. दूरी पर पर है। यह हरा परगने का तहसील कस्बा है, इसके उत्तर में तहसील बानसूर दक्षिण में तहसील दौसा तथा जमवारामगढ़ है। पूर्व में तहसील अलवर और राजगढ़ और पष्चिम में विराटनगर है। तहसील दौसा जमुवा रामगढ़ और विराटनगर यह कस्बा एक छोटी से पहाड़ी के पष्चिम भाग में उकी तलहटी से धनुषाकार में बसा हुआ है अब यह लगभग गोलाकार स्थिति में आ गया है, भूमि समतल है। इसके उत्तरी भाग में रेगिस्तान शुरु होता है रेगिस्तान के पश्चात दक्षिणी भाग में चिकनोट मिटटी का भाग है।

यहां की जलवायु प्रायः गर्मी में कडी गर्मी व सर्दियों में कडी सर्दी पड़ती है वर्षा 18 इंच के लगभग होती है।
उपजः- यहां दो फसलें रवी और खरीफ की होती है, रबी की फसल में जौ, गेहु, सरसों चना प्रधान है, और खरीफ मे मक्का, बाजरा तिल, पाट, उडद, मूंग ज्वार प्रधान है अब कुछ स्थानों पर गन्ना भी बोया जाता है यहा पर 3 बाग है पहला उत्तरकी ओर लाला का बाग, दक्षिण की ओर करण का बाग जो आजकल पंचायत समिति तथा पूर्व की और जोषिया का बाग है।

सिचाईः सिचाई कुओं से की जाती है, कुए लगभग 70 हाथ की गहराई पर है। सिचाई के लिये पूर्व में लाव चड़स आदि का प्रयोग किया जाता था, परन्तु अब लगभग विधुतीकरण से होती है मवैसियों के पानी के लिये कोई विषेष सुविधा नही है यहां अलवर जिले के प्रधान नदी रुपारेल इस ग्राम के पूर्व लगी हुई बरसात में बहती है, शेष उभयसूखों रहती है। यहां खेती करने योग्य भूमि इस प्रकार है दो फसली बीघा 300 एक फसली 500 बीघा, बारानी 592 बीघा दोयम 348 बीघा बारानी सोयम 324 बीघा है। यहां के मनुष्य अधिकतर खेती करते है और पशुपालन करते है अन्य छोटे उधोग भी लगाकर शेष उनमें नोकरी करते है। तारकोल की प्रधान सड़क पूर्व की और सरिस्का, कुषालगढ़, अकबरपुर, उमरैण होती हुई अलवर जाती है यही सड़क पष्चिम की और विराटनगर, बीलवाड़ी ,षाहपुरा, मनोहरपुर, अचरोल आदि बड़े कस्बों होती हुई जयपुर जाती है जो आगे बम्बई तक जाती है, दक्षिण की प्रतापगढ़, अजबगढ़, गोलाकाबास, दौसा किषोरी,डेरा, बामनवास गांव से होती हुई जाती है तथा उत्तर में कच्ची सड़क तिबारा होती हुई नारायणपुर जाती हे। वह आगे बानसूर तथा कोटपूतली तक जाती है।

थानागाजी का इतिहास

तहसील की वाजिब उल अज से पता चलता है कि यह कस्बा पहले यहां से दो कि.मी. की दूरी पर पूर्वकी और पहाड के तलहटी मे बसा हुआ था वास्तव में उक्त जगह पर अब मकानों के चिन्ह भी पाये जाते है भृत्या के तिबारे से पलाइक की नदी के रास्ते आने वाले रास्ते पर ये चिन्ह मिलते है ऐसा मालूम होता है कि पहले यह एक छोटा नगर था वह यहां से डेढ़मील से अधिक यानी 2 कि.मी.की दूरी पर था। इसमें देहली के बादषाह की ओर से एक आमिल रहता था जो सरकारी शाही मुलजिस था उक्त आमिल ने इस नगर के निर्माता एक गूजर की सुन्दर लडकी को देखकर उससे शादी करने का विचार किया, यह नगर मोहममदाबा के नाम से प्रसिद्व था, इस लडकी के घरवालों ने अपने धर्म के अनुसार शादी न होने से इन्कार कर दिया, और काबू पाकर इस आमिल की और उसके साथियों सहित कत्ल करके,लाषों की तुर्किया वाले कुऐ में भर दिया और खुद भाग गयै यह गूर्जर पास वाले उक्त पहाड़ के उपर जाकर बस गये जिसे आजकल माला कहते है, इस खबर को सूनते ही शाही फौज ने आकर इस नगर मुहम्मदाबाद को बिल्कुल नष्ट कर दिया, गाजी खां इस फौज का अफसर था, उक्त सम्मीगाजी खां ने अपने नाम से संवत 1518 विक्रम में इस कस्बे को बसाय यहां पर उक्त फौजी अफसर का थाना रहा, 107 वर्ष तक इसका यहां अधिकार रहा था संवत1616 ईस्वी मं यह कस्बा भानगढ़ के अधिकार में हो गया था संवत 1825 ईस्वी में भानगढ़ के राजवंष पूर्णसिंह राजा ने इस कस्बे में एक चौबुर्ज बनवाया जो बाद में एक किला हो गया गुरुबलराम दास के चेले श्री दयाल दास स्वामी ने बनवाया । इस मंदिर के पूजारी अब प.भैरु प्रसाद घनष्याम दत्त मांदरी वाले है। ढाणी कीरावाली इसके दक्षिण पष्चिम में है। इसे सेठू कीर ने बनवाया इसे संवत 1857 में बसाया गया था जायवाली ढाणी को मुकन्दा व चेमा जाट ने धमाला से उठकर संवत 1917 में बसाया था। उत्तर दिषा में खटीकों के बास को परसापोखर खटीक ने बसाया था गूजरों की ढाणी को हरचन्द गुर्जर ने राज्य जयपुर से उठकर संवत 1836 में बसाया था। संवत 1857 में व अहदकर्ण सिंह किले बार आबाद किया। ढाणी जोहड इसके उत्तर पष्चिम में है। जिसको सालन्या माली बाबल्या से संवत 1907 में बसाया नालयों की ढ़ाणी इसके पष्चिम में है जिसको लालू माली बावल्या 1907 मं बसाया लालवाडी का मैदान थानागाजी के उत्तर पूर्व में एक मील की दूरी पर है। यह जगह अब लालवाडी के नाम से प्रसिद्ध है। इस जगह पर मुगल साम्राज्य काल में कई युद्ध हुये थे। इसके पश्चात थानागाजी का किला जो अब खण्डर सी स्थिति में है यहां बारुद का भण्डार युद्ध हेतु रखा जाता था जो बारुद निकालते हुये आग लगजाने के कारण 8 अक्टूबर 1920 में ध्वस्त हो गया इस समय में सिर्फ मंदिर की ऐसे स्थान किले में बच पाया बाकी सारा किया ढ़ह गया। तहसील कार्यालय के साथ ही साथ यहां पंचायत समिति कार्यालय तथा अन्य इसी प्रकार राज्य सरकार की याजनाओं सहित कार्यालय मौजूद हैं, जहां बस स्टैण्ड पर कुछ समय पूर्व रात्रि को आते समय हर व्यक्ति डरता था

आज थानागाजी यह व्यस्ततम बाजार के रुप ले रहा है । अब बसावट इतनी अधिक होती जा रही है कि जमीनों के भाव आसमान को छूने का प्रयत्न कर रहे है। थानागाजी तहसील क्षेत्र में यहां से 8 कि.मी दूर सरिस्का नामक स्थल है जो आजकल वन विभाग के लिये वरदान सिद्ध होता जा रहा है , यहाँ का प्राकृतिक वातावरण ऐसा है जिसे हर व्यक्ति को अपनी और आकर्षित किये बगैर नहीं रहता। यदि सरिस्का पहुंचने का सौभाग्य मिलता है तथा जहां रात्रि का विश्राम किया जाये और बाघ परियोजना यहां के जानवरों के लिये वरदान सिद्ध हो रही है जानवरों की विषेष किस्में लुप्त हो जाये और वो शान्त एवं प्राकृति वातावरण में स्वचछन्द से रह सके विचरण कर सकें। इसध्येय से वर्ष 1955 से सरकार ने अभयारण्य के विकास विस्तार पर ध्यान दिया है आगे चलकर बाघ परियोजना के अन्तर्गत यहां वैज्ञानिक आधार पर विषिष्ट कार्य भी हाथ में लिये गये है। बाघ परियोजना का मुख्य ध्येय बाघों की रक्षा करने के साथ साथ वन्य जीवों पर वातावरण का प्रभाव और आगे आने पीढी के लिये जीव विद्या संबंधी अध्ययन मनोरंजन की सुविधा उपलब्ध कराने के अतिरिक्त इस राष्ट्रीय धरोहर को सुरक्षित रखना है। मुख्यतः योजना के अन्तर्गत बाघों की रक्षा करने उनके रहने खाने और वंष वृद्धि के संबंध में इस परियोजना में अधिक जोर दिया जा रहा है। इसके साथ ही वह क्षेत्र वन्य जीवों और इन्हें देखने वाले पर्यटकों के लिये और सुविधा जनक एवं आनन्द दायक बन सके इस दिषा में भी योजना के अर्न्गत पथ चलाये जा रहे है।

सरिस्का अभायारण्य वन्य जीवों के लिये स्वर्ग है। यहां मांसाहारी जीवां लिये अनेक जानवर और वनस्पति पर आधारित पशुओं के लिये मुलायमी व मन भावना पास, पत्ते व फल बहुतायत में बारह महिनों मिलते है। इसी प्रकार विभिन्न जानवरों के लिये इस क्षेत्र में बहने वाले नदी नाले आदि और विषेष रुप से बनाये गये। कुओं व खेलियों में पानी की पूरी व्यवस्था रहती है। वन्य जीवों के आवास के लिये उनके स्वभाव के अनुसार गुफायें घना अंधेरा सघन वन पानी का किनारा और मुलायम घास आदि सभी तो यहां उपलब्ध है। सबसे बड़ी बात वन्य जीवों को मिलने वाला खुला व स्वच्छन्द वातवरण और विस्तृत भू भाग है। जसमें वो जहां जैसे चाहे अपने मन से निर्णय हो, विचरण करते है। इस तरह अभयारण्य में वे सभी सुविधाएं वन्य जीवों को सुलभ हैं। जो उनको प्राकृतिक एवं स्वाभाविक जीवन के सुलभ है। मिनी बस सांयकाल रवाना होती है जिस पर प्रकाष की व्यवस्था के साथ साथ गाइड की सेवाएं भी उपलब्ध रहती है। निर्जन वन में जीवों का स्वभाविक विचरण करने के लिये कई मचान भी बने हुये है। अभयारण्य में वन्य जीवों के मुख्य एवं स्वच्छन्द और संतोष मिले इसकी
व्यवस्था पर्यटन विभाग द्वारा और प्रयास किये जाने चाहिये अभयारण्य क्षेत्र के विस्तार के कारण यहां पहले से बसें गांवों और निवासियों को काहे कोई कठिनाई नही होती हो पर यहा स्पष्ट है कि लोगां के बराबर आवागमन उनके मवेषियों द्वारा जंगल का घास और यहां उपलब्ध जल का उपयोग अभयारण्य और वन्य जीवों दोनों के लिये कठिनाई पैदा करता हैं । इससे जंगल की कटाई व चारे की कमी होती है साथ साथ वन्य जीवों के स्वच्छन्द विचरण में बाधा इस दृष्टी कोण से लोगों की अभयारण्य क्षेत्र से बाहर बसाने की शीघ्रता की जा रही है। इसके अतिरिक्त वन्य जीव विषेषकर बाघों की खाने पीने और वनस्पती पर निर्भर वन्य जीवों के लिये घास आदि की पूरी व्यवस्था करना इस समय और भी जरुरी होता है, जब गर्मी और बसंत ऋतु में यहां की हरियाली में कमी होती है। जहां पर्यटकों के और सुविधाओं की रिक्त है, अभयारण्य के उन क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण कराया जाये जहां ये सुविधा अब तक नही है। इससे पर्यटकों के विचरण क्षेत्र में बढोंतरी हो सकेगी इसके साथ ही अल्प आय के लोग भी यहां के प्राकृतिक आनन्द का मजा ले सकेगें इसके लिये कम किराया पर आवास भ्रमण सुविधा उपलब्ध होनी चाहिये कुल मिलाकर रेष्ट हाउस, वाच टावर और उसकी सड़को का निर्माण ऐसे कार्य है जिनकोपूरा करने का यहां विभाग को आय में वृद्धि होगी वही यहां आने वालों का मनचाहा सुख सन्तोष मिल सकेग।

कम रोचक नहीं है थानागाजी क्षेत्र का इतिहास और भूगोल

स्थितिः- गाजी का थाना राजस्थान के पूर्वी भाग अलवर जिले के दक्षिण-पष्चिमी कोने में स्थित है। यह कस्बा जयपुर से देहली जाने वाली सड़क के किनारे पर ही बसा हुआ है राजस्थान की राजधानी जयपुर से 100 किलोमीटर और देहली से 200 किलोमिटर दूर है। अलवर यहां से 42 किलोमीटर दूरी पर है। यह इस परगने का तहसील कस्बा है, इस के उत्तर में तहसील बानसूर दक्षिण में जिला दौसा और जमवारामगढ़ पूर्व में तहसील अलवर और राजगढ़ तथा पष्चिम में तहसील विराटनगर है। धरातलः यह कस्बा छोटी सी पहाड़ी के तलहटी में चारों ओर बसा हुआ है भूमि समतल है, इस के उत्तरी भाग से रेगिस्तान शुरु होता है और दक्षिण भाग में चिकनोट मिट्टी का भाग है। गाजी का थाना का संक्षिप्त इतिहास तहसील की वाजिब उलअर्ज से पता चलता है कि यह कस्बा पहले यहां से दो मील की दूरी पर पूर्व की और पहाड़ की तहलटी में बसा हुआ था, वास्तव में उक्त जगह पर अब भी मकानों के चिन्ह पाये जाते है। भृत्या के तिबारे से पलाई की नदी को जाने वाले रास्ते पर ऐसा प्रतीत होता है कि पहले यह एक छोटा नगर था और यहां से डेढ़ मील से अधिक दूर प्रतीत होता है । इसमें देहली के बादषाह की ओर से एक आमिल रहता था।

जलवायुः- यहां की जलवायु कड़ी है। गर्मियो में अधिक गर्मी व सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है वर्षा 1 इंच के लगभग होती है।

सड़केः- तहसील की प्रधान सड़क पूर्व की और सरिस्का, कुषालगढ़, अकबरपुर, उमरैण होती हुई अलवर जाती है यही सड़क पष्चिम की और विराटनगर, बीलवाड़ी ,षाहपुरा, मनोहरपुर, अचरोल आदि बड़े कस्बों होती हुई जयपुर जाती है जो आगे बम्बई तक जाती है, दक्षिण की प्रतापगढ़, अजबगढ़, गोलाकाबास, दौसा किषोरी,डेरा, बामनवास गांव से होती हुई जाती हैतथा उत्तर में सड़क तिबारा होती हुई नारायणपुर जाती है। वह आगे बानसूर तथा कोटपूतली तक जाती है।