पांडुपोल हनुमान जी

अलवर से 40 किलोमीटर दूर दक्षिण में तथा जान्हव ऋषि आश्रम से उत्तर दिषा में स्थित पाण्डूपोल बहुत ही प्रसिद्ध व जनमानस में आस्था का केन्द्र है। चारों तरफ ऊंचे ऊँचे पहाड़ों के मध्य में बना हनुमानजी का मन्दिर व अनेक आश्रमों ने इस स्थान की शोभा बढाई है। सरिस्का क्षेत्र पड़ने से यहां पर जंगली जानवरों के भी दर्षन होते रहते है। लगता है यह जानवर भी पिछले जन्म में भक्त थे। जो इस पावन क्षेत्र में विचरण करते रहते हैं। हर रोज यहां पर हजारों की संख्या में भक्तगण दर्षन लाभ करते है। शनिवार व मंगलवार को यहां पर मेला सा लगता है।

पाण्डव सकुषल वहां से गुजर गये। इसलिये इस स्थान का नाम पाण्डूपोल (पोल यानि दरवाजा) पड़ा । इस स्थान पर द्रोपदी ने तपस्या की थी। कहते है दुर्वासा ऋषि भी युधिष्ठिर के यहां पर भोजन करने इसी क्षेत्र में आये थे ओर द्रोपदी की पुकार पर श्रीकृष्ण ने यहांआकर पाण्डवों की रक्षा की थी। कहते सूर्य का दिया अक्षय पात्र द्रोपदी को इसी क्षेत्र में तपस्या करने पर मिला था।