नलदेष्वर जी

अलवर के 25 किलोमीटर जयुपर रोड़ से लगभग तीन किलोमीटर दक्षिण में श्री नलदेष्वर जी का पावन स्थान स्थित है। कहते है कि जब पांडवो ने पांडूपोल का दरवाजा बनाया तब वहां से चलकर पांडव इस पवित्र स्थान पर आये और विश्राम करके गये। राजा नल ने भी यहां पर लगभग बारह साल तक तपस्या की थी। अनके होथों स्थापित षिव मन्दिर आज भी यहां पर देखा जा सकता है। विचित्र प्रकार के पत्थरों से निर्मित गुफा के अन्दर स्थित षिव मन्दिर का प्राकृतिक रुपा से ही गंगा टपकती रहती है। इस नलदेष्वर जी के स्थान से 2 कि.मी. दक्षिण में षिवपुरी नामक स्थान भी अत्यन्त दर्षनीय है। जल से परिपूर्ण अनेक प्राकृतिक सरोवर प्राकृतिक छटा का अद्भुद दृष्य है। चारों तरफ फैली हरियाली हर किसी आगन्तुक यात्री का मन अपनी और खींच लेती है।

लगभग 1950 में श्री हरिनाथ जी महाराज यहां पधारे । उन्होने यहां अपने जीवन के अमूल्य 25 वर्ष साधना में गुजारे। मारोली गांवपधारकर समाधिस्थ हो गये। स्थान की देखरेख का भार इन्दुनाथ जी ने सम्भाला लेकिन अल्पायु में ही वे सिद्व सन्त समाधीस्थ हो गये। फिर इस स्थान की देख रेख ज्ञाननाथ जी ने की उनके उपरान्त सन्तोषनाथ जी यहां के स्थानाचार्य रहे। प्रत्येक श्रावण व भाद्रपद मास में यहां मेला सा लगा रहता है। विषेषकर सोमवार को तो दर्षनार्थियों का तांता ही लगा रहता है। आसपास के क्षेत्र में इस स्थान के प्रति बड़ा ही आदर भावः है।